Monday, June 28, 2010
इस शताब्दी में पीने का पानी तेल से भी महंगा होगा। जल विशेषज्ञ मानने लगे हैं कि आने वाले सालों में पानी को लेकर युद्ध भी हो सकता है। उत्तर पश्चिमी भारत में तो भूजल सालाना एक फीट की रफ्तार से नीचे गिर रहा है।
देश के 15 फीसदी से ज्यादा ब्लॉकों में पानी लगभग खत्म है यानी हालात बेहद खतरनाक हैं। दुनिया भले ही नक्शे पर नीली नजर आती हो लेकिन उपयोग करने लायक पानी महज एक फीसदी से कम है। दरअसल समस्याएं भी हम लोगों ने न केवल पैदा की, बल्कि बढ़ाई हैं। वनों का विनाश, ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन के खतरे से हम सब वाकिफ हैं। लेकिन पानी का मोल न समझने के कारण ही आज महासंकट में फंस गए हैं।
कब तक धरती का सीना चीरकर जल निकालते रहेंगे और इस अनमोल खजाने को यूं ही बर्बाद करते रहेंगे? अब यह और नहीं चलने वाला। प्रकृति से जो लिया, उसे लौटाना भी होगा। स्रोत असीमित नहीं हेैं। रेनवाटर हार्वेस्टिंग, रीसाइक्लिंग कोई सरकारी कवायद नहीं हो सकती। पानी की एक-एक बूंद का बार-बार इस्तेमाल करना हमारा कर्तव्य है। महज 15 फीसदी पानी बचाना- जी हां, यह बहुत ही आसान है।
पानी बचाने का एक उपाय 21 दिनों तक अपनाएं, फिर आदत में आ जाएगा। जरूरत संकल्प लेने की है। यकीन मानिए इस पर अमल से आप पर रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन यदि भूजल भंडारों से 15 फीसदी कम पानी निकाला जाए तो फर्क पड़ना लाजिमी है।
कुएं, तालाब, बावड़ी फिर जल से लबालब भरें, इसके लिए निजी और सामूहिक तौर पर कदम उठाने पड़ेंगे। यही तो है जल सत्याग्रह। यानी जरूरत से ज्यादा एक भी बूंद पानी बर्बाद न करने का संकल्प।
देश के 15 फीसदी से ज्यादा ब्लॉकों में पानी लगभग खत्म है यानी हालात बेहद खतरनाक हैं। दुनिया भले ही नक्शे पर नीली नजर आती हो लेकिन उपयोग करने लायक पानी महज एक फीसदी से कम है। दरअसल समस्याएं भी हम लोगों ने न केवल पैदा की, बल्कि बढ़ाई हैं। वनों का विनाश, ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन के खतरे से हम सब वाकिफ हैं। लेकिन पानी का मोल न समझने के कारण ही आज महासंकट में फंस गए हैं।
कब तक धरती का सीना चीरकर जल निकालते रहेंगे और इस अनमोल खजाने को यूं ही बर्बाद करते रहेंगे? अब यह और नहीं चलने वाला। प्रकृति से जो लिया, उसे लौटाना भी होगा। स्रोत असीमित नहीं हेैं। रेनवाटर हार्वेस्टिंग, रीसाइक्लिंग कोई सरकारी कवायद नहीं हो सकती। पानी की एक-एक बूंद का बार-बार इस्तेमाल करना हमारा कर्तव्य है। महज 15 फीसदी पानी बचाना- जी हां, यह बहुत ही आसान है।
पानी बचाने का एक उपाय 21 दिनों तक अपनाएं, फिर आदत में आ जाएगा। जरूरत संकल्प लेने की है। यकीन मानिए इस पर अमल से आप पर रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन यदि भूजल भंडारों से 15 फीसदी कम पानी निकाला जाए तो फर्क पड़ना लाजिमी है।
कुएं, तालाब, बावड़ी फिर जल से लबालब भरें, इसके लिए निजी और सामूहिक तौर पर कदम उठाने पड़ेंगे। यही तो है जल सत्याग्रह। यानी जरूरत से ज्यादा एक भी बूंद पानी बर्बाद न करने का संकल्प।
Friday, June 25, 2010
Animals have no use for payouts—they can't move to another town, they can't eat something else, and they can't pursue another line of work. So BP owes animals something different! As oil continues to wreck the water and destroy animals' breeding, nesting, and feeding grounds in the Gulf of Mexico, tens of thousands of animals are suffering and dying painful and lingering deaths—and there is no end in sight.
Sunday, June 13, 2010
go green
According to carbonfootprint.com, a PC running for an hour generates 40-80 grams of CO2, while it consumes about 60-90 % of normal workload power even when idle. When working on a PC or a laptop, we may be distracted and engage in other activities like talking on the phone, or completing other tasks, which means the computer remains idle for long hours, hence wasting energy. It’s also surprising to know that even power-saving modes like ‘Sleep’ or ‘Standby’ can consume as much as 120 Watts of power.
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